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ज़िन्दगी अपनी खूबसूरत है
इसे किसकी अब ज़रूरत है
वफ़ा इख़्लास हिज्र क़ुर्बानी
यही एहसास तो मुहब्बत है
रूह को रूह से जुदा कर दे
हिज्र की इन्तेहाँ ही फ़ुर्क़त है
हालतें देख कर मेरी उसको
हो गयी मुझ से ही मुरव्वत है
वो मुझसे सब बता नहीं पाती
मेरी उस से यही शिकायत है
देखना उस ही को चार-सू मेरे
बन गयी अब तो मेरी आदत है
अब मैं ढूंढूँ कहाँ मुहब्बत को
हो गयी वो जहाँ से रुख़्सत है
Sujay Phatak
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