(A poem on Rain- barish ki kavita)
सावन आया रे सखी, सावन आया रे,
तपती धूप के बाद भीनी सी ख़ुश्बू लाया रे,
सावन आया रे सखी, सावन आया रे।

यह पपिहे की गुंज से झूम उठता है मन, वो मोर का नाच देख हर्शाता है जीवन,
इस एहसास को सोचकर मन ललचाया रे,
सावन आया रे सखी, सावन आया रे।
यह सावन के झूले, वो बारिश का पानी,
यह टिप टिप करती बूँदे वो मौसम की रवानी,
सबके लबों पर ख़ुशियों का पैग़ाम लाया रे,
सावन आया रे सखी, सावन आया रे।
यह बच्चों का छप छप लगता है सुहाना, वो बारिश में अच्छा लगता है ख़ुद को भिगाना,
फिर काग़ज़ की कश्ती को पानी में चलाया रे और झूम के नाच दिखाया रे,
सावन आया रे सखी, सावन आया रे।
यह धूप में अपना तन मन और धन लगाके, वो खेत को हरा भरा करने का मन बनाया जिसने,
उन किसानो की मेहनत को साकार करने आया रे,
सावन आया रे सखी, सावन आया रे।
यह काशी के विश्वनाथ का आना, वो शिवालयों में जाकर अभिषेक करवाना,
यह सावन की हरयलि से दिल बहलाया रे,
सावन आया रे सखी, सावन आया रे।
यह मौसम का क्या जादू चला, वो गरमागरम भजिएँ खाने का मन हुआ,
यह अदरक वाली चाई की चूसकियों से मन भराया रे,
सावन आया रे सखी, सावन आया रे।
गरमी के दिनो के बाद, शीतलता लाया रे,
सावन आया रे सखी, सावन आया रे,
सावन आया रे सखी, सावन आया रे।
Radhika Khandelwal
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