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अधूरा तेरा इश्क़ लिखूँ या मुक़म्मल तेरा नाम,
ज़ुबाँ पर हो चुका है अब मुक़फ़्फ़ल तेरा नाम,
था वो भी एक ज़माना थी मुहब्बत बेपनाह,
मेरी हयात से हो चुका अब मोहमल तेरा नाम…
संभाली न गयी शायद शब-ए-हिज्र भी मुझसे
लिखती हूँ रोज़ कागज़ पे मुसलसल तेरा नाम…
Sujay Phatak
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