तेरा ख़याल
Urdu Poetry By Sujay Phatak (मुनफ़रिद की कलम से)
तेरी यादों के साये में छिप कर
मता-ए-जाँ मैं कभी तन्हा नहीं रहता
तेरी अखड़ियों में ग़ुम हो कर
मता-ए-जाँ मैं कभी तन्हा नहीं रहता
तू जब देख के मुझको शर्माती है
उस शर्म-ओ-हया में डूब कर
मता-ए-जाँ मैं कभी तन्हा नहीं रहता
तेरे बदन का सहारा मुझे संभाल लेता है
तेरी नज़र का इशारा मुझे संभाल लेता है
ज़ब भी मैं कहीं भटक सा जाता हूँ
तेरी पलकों का किनारा मुझे संभाल लेता है
तू जो साथ रहती है मेरे शाम-ओ-सहर
मता-ए-जाँ मैं कभी तन्हा नहीं रहता
जो ख्वाब सोचे थे साथ होंगे मयस्सर
अकेले ही तुमने कर लिए क्यों मुक़र्रर
हो रहा था बर्बाद अहल-ए-वफ़ा बन कर
अच्छा ही किया तुमने मेरे दिल को तोड़ कर
तेरे फ़िराक़ में भी अब अक्सर
मता-ए-जाँ मैं कभी तन्हा नहीं रहता
…..
2.
मेरी ज़िंदगी को बयाबान कर रखा है
एक शख्स ने बड़ा हैरान कर रखा है
इनकार की सूरत में इक़रार करता है
दिल मेरे को लुत्फ सामान कर रखा है
अब के रातों को मुझे नींद नहीं आती
एक सोच ने बेहद परेशान कर रखा है
दिल-शहर के दूर किसी कूँचे में कहीं
एक घर था जिसे वीरान कर रखा है
हालात बे-काबू हो चले हैं जब से उसने
सर-ए-आम क़त्ल का एलान कर रखा है
3
ख़यालों में उनके नीम-जाँ हो गए
याद के शहर में नए मकाँ हो गए
तश्हीर-ए-इश्क़ मुक़म्मल हो गया
शहर में वो भी एक दास्ताँ हो गए
दर्द-ए-दिल किसको बताऊँ अब मैं
हम-सुख़न सब तिरे राज़दाँ हो गए
आशिक़ी में उनकी सब छूटने लगा
हाफ़िज़ अब दुश्मन-ए-ईमाँ हो गए
समझ न पाया आखिर ये ‘मुनफरिद’
किस तरह से वो दिल-ओ-जाँ हो गए
Sujay Phatak
https://www.yourquote.in/sujay-phatak-bd82/quotes
ICSSR Full Term Doctoral Fellow
School of Economics, Devi Ahilya Vishwavidyalaya, Indore
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